- 2 Posts
- 1 Comment
जब आवाज़ दबी हो होंठ में,
जब ख्याल दबे हो बोझ में।
जब ग्रहण लगे सोच में,
तब सन्नाटे में चीख सुनाई देती है ।
क्या तुमने सन्नाटे की चीख सुनी है?
जब शब्द अपाहिज़ बनते,
स्याहि की बैसाखी पर चलते।
जब कलम लिखते नीर गिराते,
जब बेबसी खामोशी बन जाये।
तब सन्नाटे में चीख सुनाई देती है,
क्या तुमने सन्नाटे की चीख सुनी है?
जब मायूसी में आनंद आता,
बैरागी बन मन जी चाहता।
जब एकांकी ध्येय बन जाता,
जब हर्षित, उल्लासित क्रंदन सा भाता।
तब सन्नाटे में चीख सुनाई देती है।
क्या तुमने सन्नाटे की चीख सुनी है?
जब प्रश्न बिना उत्तर दिखते,
तब हर कदम अग्नि परीक्षा लगते।
जब जिंदा भी मुरदे से लगते,
जब लछमण रेखा में जीवन बंटते।
तब सन्नाटे में चीख सुनाई देती है।
क्या तुमने सन्नाटे की चीख सुनी है?
जब हर ह्रदय पाषाण नज़र आता ,
जब रोम रोम हर बात पर थर्राता।
जब वीराना आशियाना बन जाता है,
जब सब स्याह नज़र सा आता है।
तब सन्नाटे में चीख सुनाई देती है।
क्या तुमने सन्नाटे की चीख सुनी है?
Read Comments